Tuesday, August 30, 2011

सुहागरात दोस्त क��� बीवी के साथ



मेरे बचपन के दोस्त सिद्धार्थ की शादी को तीन महीने ही हुए थे। उसकी पत्नी का नाम कीर्ति है। उसकी शादि चूंकि कीर्ति के परिवार वालों ने हमारे शहर में आकर की थी तो उनकी देखरेख का काम मैंने ही किया था। इसी कारण कीर्ति भी मुझे पहचानने लगी थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मैं मन ही मन सोचने लगा कि बेटा सिद्धार्थ तेरी तो किस्मत ही खुल गई क्योंकि कीर्ति बहुत सुन्दर है, ५'४", लम्बे बाल, गुलाबी होंट, आंखें बड़ी बड़ी और नशीली और आवाज कोयल की तरह है। कीर्ति और सिद्धार्थ दोनों एम एस सी पढ़े हैं।

अब मैं सिद्धार्थ के घर कम ही जाने लगा और सिद्धार्थ इस बात की शिकायत भी करता कि मैं उसके घर नहीं आता। तो मैंने एक दिन कहा कि मैं आने लगूंगा तो भाभी मन ही मन कहेंगी कि अमित जब देखो यहीं पड़ा रहता है। यह बात सुन कर वो नाराज़ हो गया और कहने लगा कि अमित तू ऐसी बात करता है और कीर्ति कहती है कि अमित जी आते ही नहीं हैं, क्या अमित जी मुझसे नाराज़ हैं। यह बात सुनकर मुझे कुछ अजीब सा लगा पर मैंने सिद्धार्थ से कल आने का वायदा किया, वैसे तो हमारे घर पास पास ही हैं।

अगले दिन मैं उसके घर गया तो मुझे कीर्ति भाभी मिली, वो रसोई में नाश्ता बना रही थी। मैंने भाभी को हेलो बोला और सिद्धार्थ के बारे में पूछा।

कीर्ति मुझे देख कर काफ़ी प्रसन्न हुई और बोली- अमित जी ! आज आप कैसे सुबह सुबह आ गए ! चलो आए हो तो अपने दोस्त से ही मिलने आए होंगे।

मैंने कहा- नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं, बस काफ़ी दिनों से कुछ ज्यादा काम आ गया था, इसलिए नहीं आया।

कीर्ति बोली- सिद्धार्थ बाज़ार गए हैं, आज शाम को उन्हें ओफ़िस के काम से इन्दौर जाना है, इसलिए घर का सामान लेने गए हैं। आप बैठिए, मैं नाश्ता लाती हूँ।

मैंने कहा- नहीं भाभी, मैं नाश्ता नहीं करूंगा।

तो कीर्ति बोली- अमित जी ! एक बार नाश्ता कर के देखें कि मैं कैसा नाश्ता बनाती हूँ।

तो मैं कीर्ति भाभी को मना नहीं कर पाया। फ़िर भाभी ने पूछा- आप चाय लेंगे या जूस?

तो मैंने कहा- भाभी, मैं तो सुबह चाय ही लेता हूँ।

भाभी दो कप चाय ले आई और हम साथ साथ ही नाश्ता करने लगे। मैंने कीर्ति की ओर देखा, वो काले रंग के गाऊन में थी। कीर्ति के दूध के समान गोरे रंग पर काला गाऊन काफ़ी जच रहा था। शायद कीर्ति ने ब्रा नहीं पहनी थी फ़िर भी उसकी छाती काफ़ी आगे को उभरी हुई थी। उसे देख कर मेरे मन में अजीब सी हरकत होने लगी लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो कीर्ति को बुरा लगे।

थोड़ी देर बाद सिद्धार्थ भी आ गया और मुझे देख कर बहुत प्रसन्न हुआ, बोला- अच्छा हुआ अमित तुम मुझे यहां पर ही मिल गए।

मैंने पूछा- कुछ काम था क्या?

सिद्धार्थ बोला कि मैं एक सप्ताह के लिए इंदौर जा रहा हूँ और तुम्हारी भाभी को बाज़ार से कुछ सामान की आवश्यकता थी इसलिए तुम और कीर्ति बाज़ार से सामान ले आना।

मैंने कहा- तुम चिन्ता मत करो।

फ़िर अगले दिन कीर्ति का फ़ोन आ गया कि अमित जी आज हम बाज़ार चलें अगर आप को कोई और काम ना हो तो।

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